Monday 10 December 2012

उम्मीदों के पुल बने सीतामढ़ी

  मां जानकी की जन्म भूमि के साथ हिमालय की वादियों व पड़ोसी देश नेपाल से सटे सीतामढ़ी को 11 दिसंबर 1972 को जिला का दर्जा मिला। स्थापना के 41 वर्ष के सफर में जिले ने बहुत कुछ पाया है तो खोया भी है। बागमती नदी की गोद में बसे इस जिला को विभाजन भी ङोलना पड़ा। जिले का एक अनुमंडल शिवहर कटकर जिले के रूप में नक्शे पर आया। विकास के आधार पर स्थापित सीतामढ़ी पहले मुजफ्फरपुर जिला में शामिल था। जिस समय जिले की स्थापना हुई, तब यहां मां जानकी की जन्मस्थली समेत कई धार्मिक व पौराणिक स्थल ही थे। इसके अलावा अंग्रेजी हुकूमत की कुछ अवशेष, व गिने चुने शैक्षणिक संस्थान थे। पहले यहां नील की खेती होती थी। जिला मुख्यालय से शहर तक सड़क के दोनों तरफ जंगली वृक्ष थे। जिले का दर्जा मिलने के बाद उम्मीदों के पुल बने, जिंदगी की रफ्तार के लिए सड़के बनी, शिक्षा का इंद्रधनुषी छटा सामने आया। स्कूल, कालेज खुले, इंजिनियरिंग कालेज, पालिटेक्निक स्कूल व मेडिकल कालेज की स्थापना की कवायद भी जारी है। रेलमार्ग बने, सीतामढ़ी स्टेशन को जंक्शन का दर्जा मिला। सीतामढ़ी-मुजफ्फरपुर नई रेल मार्ग का निर्माण कार्य अंतिम चरण में है। वहीं दरभंगा-सीतामढ़ी व सीतामढ़ी से बैरगनिया के बीच आमान परिवर्त्तन हुआ है। बैरगनिया - छौड़ादानों के बीच अब ट्रेन चलने का इंतजार है। 40 वषरे में चार स्टेशन व पांच हाल्ट बने है। बाढ़ का कहर ङोलते जिलावासियों को कटौझा, बंशी चाचा पुल ढ़ेंग व डुब्बा घाट पुल तोहफा भी मिला है। मारड़घाट पर पुल का निर्माण हो चुका है। कई सरकारी भवन बने है। जिले ने स्वास्थ्य व्यवस्था में नया मुकाम बनाया है। जिला बनने के पूर्व यहां महज चार पीएचसी थे, अब इनकी संख्या 17 है। स्वास्थ्य सेवा हाईटेक हो चली है। पशुपालन व कृषि व्यवस्था भी विकास की राह में है। नदियों पर बांध व बराज का निर्माण हुआ है। सिंचाई की व्यवस्था हुयी है। वर्ष 1972 में 8 प्रखंड थे अब 17 है। एक नगर परिषद था। वर्तमान में एक नगर परिषद के साथ डुमरा, पुपरी, बैरगनिया व बेलसंड समेत चार नगर पंचायत है। सुरसंड को नगर पंचायत का दर्जा देने की कवायद जारी है। राज्य सरकार ने सीतामढ़ी को पर्यटक स्थल का दर्जा प्रदान किया है। अब केंद्र सरकार से मंजूरी मिलने की प्रतीक्षा है। जेल, पुलिस लाईन, समाहरणालय, न्यायालय, पोस्ट आफिस, स्टेडियम, दूरदर्शन रिले केंद्र, नगर उद्यान आदि सरकारी भवन व आवासीय कालोनी का निर्माण हुआ है।२०१२ में नाग्रेंद्र झा बेलसंड नगर पंचायत के चेयरमैन बनें। उनके चेयरमैन बनते ही बेलसंड की तकदीर बदल गई। ग्रामीण परिवेश में नगर प्रशासन का मेल आपको बेलसंड में देखने को मिलेगा। चेयरमैन बनते ही उन्होंने जनता के दर्द को समझा और स्थानीय प्रशासन को भयमुक्त बना दिया। सफाई को देखकर आपको सहसा अंदाजा लग जाएगा कि नगर किस प्रशासन द्वारा चलाया जा रहा है। नाग्रेंद्र झा ने सर्वप्रथम जवाहरलाल शहरी मलिन बस्ती योजना के तहत बेलसंड के लिए भाग्य खोल दिया। कभी नक्सलियों की पनाहगार के तौर पर बदनाम बेलसंड में कोई वैर भाव नही है। लोगों को एक अच्छे प्रशासन की जरूरत थी जो उन्हें नागेन्द्र झा के प्रशासन में मिल रही है।

No comments:

Post a Comment