Wednesday 26 December 2012

ईशाननाथ मंदिर : सुविधाओं का अभाव


दिलीप झा की रिपोर्ट
बेलसंड। ऐतिहासिक दमामी मठ को रामायण सर्किट से जोडऩे व जीर्णोद्वार पर्यटन मंत्री सुनील कुमार पिन्टू के आश्वासन के बाद आशा जगी लेकिन इसको अमलीजामा नहीं पहनाया गया। आज भी यह पर्यटन स्थल सुविधाओं का रोना रो रहा है। जिले के पर्यटन मंत्री होने के बावजूद भी सुनील पिंटू सिर्फ  आश्वासन ही दे रहे हैं। पिछले साल सितंबर महीने में पयटन मंत्री ने मंदिर परिसर का निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान उन्होंने मंदिर परिसर में स्थित तीन कुआं, तालाब, शमशान घाट एवं ध्वस्त अतिथिशाला का निरीक्षण किया। इस ऐतिहासिक मठ को पर्यटन के मानचित्र पर लाने के लिए स्थानीय विधायक सुनीता सिंह चौहान, बेलसंड नगर पंचायत चेयरमैन नागेंद्र झा प्रयासरत हैं। इन्होंने मुख्यमंत्री से इसके संबंध में अनुरोध किया था। जिसके आलोक में सरकार ने जिला प्रशासन से विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी। इस संबंध में अनुमंडलाधिकारी डा. विद्यानंद सिंह (बेलसंड) ने सेवानिवृत अभियंता राम निवास शर्मा एवं अन्य लोगों के सहयोग से उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर विस्तृत प्रतिवेदन तैयार करा कर जिला प्रशासन के माध्यम से पर्यटन विभाग को भेजा था। ज्ञात हो कि यह मंदिर राजा जनक द्वारा स्थापित बताया जाता है।
 दमामी मठ से विख्यात व बाबा ईशाननाथ मंदिर को रामायण सर्किट से जोडऩे की कवायद शुरू हो गई है। इसी के साथ अब लोगों को मंदिर के जीर्णोद्वार की उम्मीद जगी थी। उचित देखरेख के अभाव में यह मंदिर ध्वस्त होने के कगार पर है एवं इसे पर्यटन के मानचित्र पर लाने की मांग वर्षों से की जा रही है।
उल्लेखनीय है कि अनुमंडल मुख्यालय से लगभग पांच किमी की दूरी पर अवस्थित दमामी मठ के रूप में विख्यात बाबा ईशान नाथ का दुर्लभ शिवलिंग की पूजा लोग वर्षों से कर रहे हैं। बेलसंडए परसौनी एवं रुन्नीसैदपुर प्रखंडों के हजारों श्रद्धालु सुबह पांच बजे की आरती पूजा के दौरान उपस्थित रहते हैं। स्थानीय लोग अपनी दिनचर्या सुबह में बाबा ईशान नाथ के दर्शन के साथ शुरू करते हैं। वैसे मंदिर में देर रात तक दर्शन करने वालों की भीड़ लगी रहती है। शिव रात्रि, वसंत पंचमी, अनंत चतुर्दशी के अलावा सावन के महीने में खासकर सोमवार को यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है। वर्तमान में ध्वस्त अतिथिशाला, पाठशाला, परिसर की चाहरदीवारी, जर्जर पोखर एवं तीन कुंआ के भाग विशेष मंदिर के प्राचीन काल में भव्य तीर्थ स्थान होने की गवाही देते हैं। लगभग 15 एकड़ के विस्तृत क्षेत्र में फैला मंदिर का परिसर इसकी संपन्नता का साक्षी है। पहले यहां वसंत पंचमी एवं दुर्गापूजा के अवसर पर विशाल मेला लगता था। लेकिन अब पहले जैसी बात नहीं है। बताया जाता है कि यह मंदिर राजा जनक के समय में भी अवस्थित था। प्राचीन काल में यह मंदिर बागमती नदी के किनारे स्थापित था। कालांतर में नदी ने अपनी धारा परिवर्तित कर ली। वर्तमान में नदी के प्रतीक के रूप में लगभग बीस किमी लंबा नासी उपलब्ध है। मंदिर परिसर में शिवलिंग के सामने 16 महंथों की समाधी भी भग्नावस्था में मौजूद है। मंदिर के वर्तमान पुजारी गिरी के अनुसार इस मंदिर के जात पहले महंत दुंद गिरी थे। उसके पहले का इतिहास उपलब्ध नहीं है, उसके बाद क्रमश: तुंग गिरी, भैरव गिरी, कनक गिरी, सूरज गिरी, बालकृष्ण गिरी, परिक्षण गिरी, राजनारायण गिरी एवं रामचन्द्र गिरी गुरु शिष्य परंपरा के तहत महंथ होते आए। रामचन्द्र गिरी ने विवाह कर वंश परंपरा कायम की और वर्तमान पुजारी उनके पुत्र हैं। मंदिर का प्राचीन घंटा जिसपर उत्कीर्ण अभिलेख के अनुसार 1293 ई. में कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को जलेश्वर स्थान के महंथ प्रीति गिरी ने सिंह द्वार के सामने स्थापित कराया था। मंदिर का सिंह द्वार बंगाल की स्थापत्य कला से प्रभावित दिखता है। इसका निर्माण सुरखी चूना से किया गया है जो काफी आकर्षक है। राजांतर में पार्वती जी एवं हनुमान जी के मंदिर का निर्माण कराया गया है। मंदिर में अवस्थित शिवलिंग भूतल से 12 फीट नीचे है। शिवलिंग लगभग दो फीट लंबा है एवं काफी आकर्षक है। मंदिर नेपाल के अवस्थित जलेश्वर नाथ एवं अरेराज स्थित सोमेश्वर नाथ से काफी मिलता जुलता है। बरसात के महीनों में शिवलिंग जलमग्न रहता है। मान्यता के अनुसार बरसात के दिनों में लिंग के जलमग्न न होने पर सुखाड़ की स्थिति उत्पन्न होती है। मंदिर में 3 मार्च 2006 में राम निवास शर्मा द्वारा 101.1 किलो का पीतल का घंटा लगवाया गया है एवं अमलेन्दु पांडेय द्वारा बरसात के दिनों में गर्भ गृह से जल निकासी हेतु उपकरण दिए गए है। ऐसी मान्यता है कि रामचन्द्र जी जानकी जी के साथ विवाह के पश्चात जनकपुर से इसी रास्ते अयोध्या गए थे एवं इस मंदिर में पूजा अर्चना भी की थी।
इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां भक्ति भाव से अगर कुछ भी मांगा जाए तो पूरा हो जाता है।
इस संबंध में पर्यटन मंत्री सुनील कुमार पिंटू का कहना है कि रामायण सर्किट से जोडऩे की घोषणा मैंने की थी लेकिन इन कार्यों में समय लगता है। सीतामढ़ी  के अधिकारी इस संबंध में रिपोर्ट देंगे तो बात बनेगी। समय पर रिपोर्ट आ जाएगी तो इसे सर्किट से जोडऩे की बात होगी। इन कार्यों में समय लगता है।
जब सीतामढ़ी के जिलाधिकारी से बात की गई तो उनका कहना है कि यह हमारे हमारे जिले के गौरव की बात है। उन्होंने कहा कि इस पर सकारात्मक पहल की जाएगी। संस्कृति विभाग के संज्ञान में इसे डाला जाएगा।
        
                                          साभार
                                         दैनिक प्रभात
                                       समाचार पत्र

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