Thursday 10 January 2013

ईमानदारी की मिसाल माने जाने वाले शास्त्री जी

लाल बहादुर शास्त्री एक ऐसी हस्ती थे, जिन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में देश को न सिर्फ सैन्य गौरव का तोहफा दिया, बल्कि हरित क्रांति और औद्योगीकरण की राह भी दिखाई। ईमानदारी की मिसाल माने जाने वाले शास्त्री जी किसानों को जहां देश का अन्नदाता मानते थे, वहीं देश के सीमा प्रहरियों के प्रति भी उनके मन में अगाध प्रेम था जिसके चलते उन्होंने 'जय जवान जय किसानÓ का नारा दिया। पाकिस्तान ने 1965 में यह सोचकर भारत पर हमला किया कि 1962 में चीन से लड़ाई के बाद भारत की ताकत कमजोर हो गई होगी, लेकिन शास्त्री जी के कुशल नेतृत्व ने पाक के नापाक इरादों को नाकाम कर दिया और उसे करारी शिकस्त भी दी। महर्षि दयांनद विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर रजनीश सिंह के अनुसार पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान को लाल बहादुर शास्त्री के उन बुलंद हौसलों का अंदाज नहीं था, जिनके चलते पाकिस्तानी हुक्मरान को भारत के नेता के सामने गिड़गिड़ाना पड़ा। सिंह के अनुसार जुलाई 1964 में शास्त्री जी जब राष्ट्रमंडल प्रमुखों की बैठक में भाग लेने लंदन गए तो रास्ते में इंधन भरने के लिए उनका विमान कराची में उतरा जहां उनका स्वागत अयूब खान ने किया। अयूब खान ने शास्त्री जी को देखकर अपने एक सहयोगी से पूछा था कि क्या यही आदमी जवाहर लाल नेहरू का वारिस है। इस घटना का महत्व इसलिए बहुत अधिक था क्योंकि उसके बाद के साल 1965 में अयूब ने कश्मीर घाटी को भारत से छीनने की योजना बनाई थी। पाकिस्तान ने साजिश को अंजाम देते हुए कश्मीर में नियंत्रण रेखा से घुसपैठिए भेजे और पीछे-पीछे पाकिस्तानी फौजी भी आ गए। शास्त्री जी ने दूरदर्शिता दिखाते हुए पंजाब में दूसरा मोर्चा खुलवा दिया। अपने अत्यधिक महत्वपूर्ण शहर लाहौर को भारत के कब्जे में जाते देख पाकिस्तान ने कश्मीर से अपनी सेना वापस बुला ली। इस तरह लाल बहादुर शास्त्री ने अयूब खान की सारी अकड़ निकाल दी। अयूब खान की पाकिस्तान में काफी थू-थू हुई और शास्त्री जी विश्व मंच पर एक प्रभावशाली नेता के रूप में स्थापित हो गए। पाक हुक्मरान ने अपनी इज्जत बचाने के लिए तत्कालीन सोवियत सेंघ से संपर्क साधा जिसके आमंत्रण पर शास्त्री जी 1966 में पाकिस्तान के साथ शांति समझौता करने के लिए ताशकंद गए। इस समझौते के तहत भारत पाकिस्तान के वे सभी हिस्से लौटाने पर सहमत हो गया, जहां भारतीय फौज ने विजय के रूप में तिरंगा झंडा गाड़ दिया था। इस समझौते के बाद दिल का दौरा पडऩे से 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में ही शास्त्री जी का निधन हो गया। उनकी मौत की आधिकारिक रिपोर्ट आज तक जारी नहीं हुई है। उनके परिजन मौत के कारणों पर सवाल उठाते रहे हैं। सिंह ने कहा कि शास्त्री जी ने अयूब खान जैसे अहंकारी तानाशाह का घमंड ही चूर नहीं किया , बल्कि उन्हें अपने सामने गिड़गिड़ाने पर मजबूर भी कर दिया था। ताशकंद में खान ने शास्त्री जी से कहा कि कुछ ऐसा कर दीजिए जिससे वह पाकिस्तान में मुंह दिखा सकें। प्रोफेसर सत्यप्रकाश का कहना है कि शास्त्री जी ने देश को सैन्य गौरव का तोहफा ही नहीं दिया, बल्कि हरित क्रांति का सूत्रपात कर कृषि क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने का काम भी किया। उनके दिए गए 'जय जवान जय किसानÓ नारे ने देश के सैनिकों और किसानों में एक नई उमंग और नया जज्बा भरने का काम किया। शास्त्री जी ने देश के विकास की रफ्तार बढ़ाने के लिए उद्योगों को सरकारी नियंत्रण से बाहर निकालने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लाल बहादुर शास्त्री देश में सादगी भरे और ईमानदार व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते हैं ,जो अपने खर्चों के लिए खुद को मिलने वाली तनख्वाह पर निर्भर रहते थे।

No comments:

Post a Comment